रात में जागना और दिन में सोना, मोबाइल की लत बना रही मनोरोगी
वेब सीरीज के इर्दगिर्द घूमने वाला संसार लोगों को वास्तविक दुनिया से दूर कर रहा है। बच्चों और बड़ों में जल्दी गुस्सा आने, मन अस्थिर होने और डिप्रेशन की समस्याएं बढ़ गई हैं। कोरोना महामारी के बाद जिले में ऐसे मामले ज्यादा आने लगे हैं।कोरोना काल में ओटीटी नेटवर्क पर मनोरंजन के नाम पर दिखाई गई अश्लीलता और कत्लेआम ने बच्चों की दुनिया पूरी तरह बदल दी है। डॉक्टरों के मुताबिक बच्चों और बड़ों से लेकर सभी में आनंद रसायन या डोपामाइन केमिकल बहुत बढ़ गया है। मनोचिकित्सकों के अनुसार बच्चे अभिभावकों पर शक कर रहे हैं तो बड़ों में ‘किसी चीज को खोने का डर’ की भावना घर कर गई हैं।
सरकारी और निजी चिकित्सकों के पास पहले प्रतिदिन ऐसे 3-4 मामले आते थे। अब रोजाना 35 से 40 केस आ रहे हैं। ऐसे बच्चों की संख्या में ज्यादा बढ़ी है। मेडिकल में हर रोज 100-120 मरीज आ रहे हैं और इनमें अधिकांश डिप्रेशन के हैं। इसी तरह जिला अस्पताल में 80 से 90 मरीज आ रहे हैं। ज्यादातर नींद न आने और डिप्रेशन के हैं।
साइकोलोजिस्ट एवं हिप्नोथिरेपिस्ट डॉ. कशिका जैन ने बताया कि सभी समस्याओं का बड़ा कारण वेब सीरीज हैं। टीवी पर सीरियल देखने के बाद उसके दूसरे पार्ट को देखने के लिए हफ्ते भर या कम से कम 24 घंटे इंतजार करना पड़ता है। ऐसे में उनका ध्यान अन्य चीजों में लग जाता है। वेब सीरीज में ऐसे नहीं होता है। जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. कमलेंद्र किशोर ने बताया कि वेब सीरीज 8 से 10 घंटे जोड़कर कर रखती है और इसे देखने वाले वास्तविक्ता से दूर चले जाते हैं।
इस तरह करें बचाव
- - अपने प्रियजनों के संपर्क में रहें और जितना संभव हो, खुद को व्यस्त रखें
- - परिवार के जिम्मेदार लोग बच्चों और बड़ों से बातचीत करते रहें
- - हर कार्य को करने के लिए समय का निर्धारण होना चाहिए
- - बच्चों को अनुशासित रखें और थोड़ी-थोड़ी पाबंदी लगाएं
- - बच्चों और बड़ों संग नियमित रूप से प्राणायाम और मेडिटेशन करें
अभिभावकों को भूले बच्चे
एडिक्शन बढ़ने के कारण बच्चा अपनी ही दुनिया में खोया रहता था। काउंसलिंग के दौरान एक बच्चे ने बताया कि माता-पिता अगर उसे सुविधा नहीं दे सकते तो जन्म ही क्यों दिया। बच्चों ने काउंसलिंग के दौरान कई बार गाली-गलौज और किसी भी बात पर चिल्लाने लगते हैं।
अपराध की तरफ जा रहे युवा
युवा सामने वाले को कूल डूड बनकर दिखाने का प्रयास करते हैं। वह मूवीज में इस्तेमाल शब्द बेझिझक प्रयोग करते हैं। पाबंदी लगाने पर लैपटॉप डबल स्क्रीन खोलकर चोरी-छिपे आपत्तिजनक चीजें देखते हैं। ऐसे में अभिभावकों को बच्चों से खुलकर बात करनी चाहिए।
सावधानी बन रही सनक, एहतियात जरूरी
सर, हर समय यही चिंता लगी रहती है कि कोरोना वायरस न लग जाए...दिन में कम से कम बीस बार हाथ धो रहे हैं...घर से बाहर जाने से बचने लगे हैं...। कोरोना काल में संक्रमण के डर से अकेलेपन और हताशा से जुड़ी ऐसी समस्याएं अभी भी कम नहीं हुई हैं। नेशनल मेंटल हेल्थ क्राइसिस की हेल्पलाइन पर हर सप्ताह 90-100 समस्याएं इसी तरह की आ रही हैं। हेल्पलाइन इंचार्ज जिला अस्पताल की क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट डॉ. विभा नागर ने बताया कि मेंटल हेल्थ के तहत ओसीडी यानी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर। यह एक तरह की सनक है, जो डिप्रेशन का कारण बन सकती है। इस अवस्था में मरीज एक ही काम बार-बार करता है।
मोबाइल एडिक्शन कई गुना बढ़ा
लॉकडाउन के बाद डिप्रेशन और नींद न आने के मामले कई गुना बढ़ गए हैं। बच्चों में फियर ऑफ मिसिंगआउट और मोबाइल एडिक्शन के मामले कई गुना बढ़ गए हैं।- डॉ. तरुण पाल, मनोचिकित्सक, मेडिकल कॉलेज
योग और अध्यात्म का सहारा लें
योग और अध्यात्म का सहारा लें। परिजनों और मित्रों से नियमित चर्चा करें। मन को एकाग्र कर विषम परिस्थितियों से उभरने के लिए सकारात्मक विचार ग्रहण करने चाहिए।- डॉ. ऐश्वर्य राज, वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ, लोकप्रिय अस्पताल
रात में जागना और दिन में सोना, चिंता में घिरे अभिभावक, तर्क करने की शक्ति पर भी लग रहा ग्रहण
कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को मोबाइल फोन की लत लग गई। मोबाइल पर पढ़ाई से दिमाग की तर्क शक्ति घट रही है। मोबाइल फोन में अनेक एप से जीवन में भटकाव अभिभावकों की चिंता बढ़ा रहा है। विद्यार्थियों और चिकित्सकों का मानना है मामूली उलझन में मोबाइल की हेल्प से बच्चों में सोचने की शक्ति कम हो रही है। क्लास में शिक्षकों को उलझनों के सवाल जवाब से व्यावहारिक ज्ञान मिलता था। अमर उजाला ने इस मुद्दे पर विद्यार्थियों से बातचीत की है।
शहर की मानसरोवर कॉलोनी निवासी इलिका देहरादून में बीकॉम द्वितीय वर्ष में पढ़ाई कर रही है। लॉकडाउन से घर से ऑनलाइन पढ़ाई के अलावा एग्जाम दिए हैं। कहती है आंखों में दिक्कतें बढ़ रही हैं। डीयू कॉलेज में बीएससी कंप्यूटर साइंस से बीएससी करने वाली शहर की छात्रा जाह्नवी का मंतव्य है कि मोबाइल फोन ने दिमाग पर डाका डाल दिया है। उस पर देखकर एग्जाम देने से व्यावहारिक ज्ञान कमजोर हो रहा है। क्लास में टीचर पढ़ाते हैं, तो वह मेमोरी में फिट बैठता है।
मेरठ में एक इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक करने वाली प्रेमपुरी निवासी रीतिका और पटेल नगर निवासी विदुषी डीयू से बीएससी करने वाली छात्राओं की राय भी यहीं है। कहती हैं ऑनलाइन पढ़ाई करना मजबूरी का कार्य है। शहर के आदर्श कॉलोनी निवासी अक्षांश त्यागी एसडी पब्लिक स्कूल से इंटर की तैयारी कर रहे हैं। घर से मोबाइल फोन पर आंखों के अलावा कई दिक्कतें आती हैं।शहर से बीफार्मा तृतीय वर्ष में चरथावल का आकाश परीक्षा की तैयारी घर से कर रहा है। मोबाइल फोन पर पढ़ाई के साथ नेटवर्क की दिक्कत आड़े आती है और कई बार उलझनों का समाधान नहीं होने से तनाव होने लगता है।
क्या कहते हैं चिकित्सक
ऑनलाइन पढ़ाई का बोझ आंखों पर प्रभाव डाल रहा है। विद्यार्थी मोबाइल पर पढ़ाई से भटक कर अनेक एप गेम आदि देखने लगते है। समय बर्बाद होता है। जिससे सोचने समझने की शक्ति नहीं रहती। कई बार नई पीढ़ी अवसाद में आने लगती है। डॉ. प्रमोद कुमार
अभिभावकों की राय:
अभिभावक अमित गर्ग, सारिका, पंकज आदि कहते हैं मोबाइल फोन से चिपकने का कारण पूछने पर बच्चे कोर्स की बात बताते हैं। कई बार कोर्स समझ नहीं आने से बच्चे चिंता में डूबे रहते है। कोविड में एंड्रायड फोन से बच्चों की जिंदगी में बदलाव उनके भविष्य के लिए चिंताजनक है।